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RAJDOOT 19's के युवाओं के दिल की धड़कन | ROAJDOOT की पूरी कहानी |

भारत में जब भी मजबूत बाइक्स की बात आती है. तो राजदूत का नाम उसमें जरूर आता है. यह कोई आम बाइक नहीं थी.यह भारत की पहली स्पोर्ट्स बाइक मानी जाती है. इसने लोगों को बताया कि. आखिर रफ्तार क्या होती है.

 जहां एक समय में सब royal enfield के पीछे भाग रहे थे. उस समय में राजदूत ने मार्केट में आकर उसे कड़ी टक्कर देना शुरू किया था. यह वह बाइक थी जिसे शहर और गांव दोनों ही जगह के लोग पसंद करते थे. ऐसा इसलिए था 

क्योंकि यह हर जगह चलने में सक्षम थी और तेज होने के साथ साथ माइलेज में भी बुलट से आगे थी. हालांकि आज इस दमदार बाइक का नामोनिशान देखने को नहीं मिलता.तो चलिए क्यों न एक बार फिर जाना जाए कि आखिर कैसे राजदूत भारत के आम लोगों की स्पोर्ट्स बाइक बनीं.




 राजदूत की शुरुआत हुई. साल 1962 में जब एस्कॉर्ट्स ग्रुप नाम की एक कंपनी ने एक पोलिश बाइक को भारत में राजदूत के नाम से बनाना शुरू किया.

यह 175 सीसी की बाइक थी. शुरुआत में जब यह आई तो इसे मार्केट में अपनी जगह बनाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी. क्योंकि भारत में बुलट ने पहले ही. अपना कब्जा जमा रखा था. हालांकि यह बाइक बाकी बाइक से बहुत ज्यादा एडवांस थी.

 मगर इसे ज्यादा ग्राहक नहीं मिल रहे थे. कई सालों तक राजदूत मार्केट में. अपनी पहचान बनाने के लिए तरसती रही. इसे अपनी असली पहचान तब मिली. जब 1973 में आई फिल्म. बॉबी में ऋषि कपूर ने इसे चलाया. वह फिल्म तो फ्लॉप हो गई मगर उस फिल्म ने राजदूत को हिट कर दिया.

बॉबी के आने के बाद से दो. राजदूत के मानों दिन ही बदल गए. लोग भी ऋषि कपूर की तरह. ऐसी ही बाइक चलाने लगे. देखते ही देखते राजदूत की डिमांड बढने लगी. अच्छी लोकप्रियता के बाद भी राजदूत 175 बहुत बड़ी हिट नहीं बन पाई.1982 आते आते. 

यह ओल्ड फैशन बाइक बन गई इसलिए उसी साल इसे बंद कर दिया गया. कंपनी समझ गई कि ग्राहक कुछ और चाहते हैं इसलिए उन्हें ग्राहकों को इससे भी अच्छी बाइक लाकर देनी होगी. 1983 में. एस्कोर्ट ग्रुप ने यामा से गठबंधन कर लिया.

उन्होंने मिलकर राजदूत की नई बाइक निकाली. जिसे अब 350 सीसी इंजन के साथ बनाया गया. यही वक्त था.

जब यह बाइक हर किसी को भाने लगी. यह बाइक हल्की होने के साथ साथ. मजबूत भी थी और बुलट के मुकाबले. काफी कम पैट्रोल लेती थी. यही कारण बने कि सिर्फ शहरी नहीं. बल्कि गांवों के इलाकों में भी राजदूत को पसंद किया जाने लगा.

 राजदूत 350 के फीचर बहुत दमदार थे. इसमें छह गियर थे और इसकी अधिकतम स्पीड 150 किलोमीटर प्रति घंटा तक थी. तेज रफ्तार बाइक होने के कारण. कुछ ही समय में. यह युवाओं के दिल की धड़कन बन गई.

माना जाता है कि एक समय में राजदूत इतनी प्रसिद्ध हो गई थी कि कोई और बाइक इसके मुकाबले कुछ भी नहीं थी. ऐसा कहा जाता है कि एक समय तो ऐसा आया. जब राजदूत ने बुलेट को भी पीछे छोड़ दिया था. वह समय राजदूत का सुनहरा समय था. 

कामयाबी उसके कदम चूम रही थी. आज दूध की खासियत थी की यह बाइक गांव के कच्चे रास्तों पर भी बहुत अच्छे से चला करती थी. इसमें पैट्रोल भी कम लगता था. इसलिए यह किफायती भी थी. यही कारण बना कि भारत सरकार ने एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के अफसरों को यह बाइक दी जिससे वे आराम से दूर दूर तक गांव में जा सकते थे.

सिर्फ अफसरों को ही नहीं गांव के सामान्य लोगों को भी राजदूत खूब भाई. कई दूधवाले इस बाइक का इस्तेमाल करते थे. इसमें दूध के बड़े ड्रम लगा के सुबह सुबह कच्चे रास्तों पर बड़े ही आराम से जाया जा सकता था

 जिन रास्तों पर कोई आम बाई दम तोड़ देती थी उन पर ही भारी वजन के साथ राजदूत मदमस्त होकर चला करती थी. 1980 से 1990 तक के समय में.

राजदूत ने भारत के मार्केट में खूब नाम कमाया. हजारों बाइक पूरे भारत में बेची गई. सब ठीक चल रहा था कि तभी जमाने में नई तकनीक की बाइक आने लगी. यह नई बाइक ज्यादा सस्ती और किफायती थी

. राजदूत बहुत समय से अपनी बाइक्स में कोई नई टैक्नोलॉजी नहीं लाई थी और यही राजदूत के पतन की असली वजह बनी राजदूत वक्त के साथ ओल्ड फैशन होती जा रही थी. राजदूत के पास बहुत मांगे थे जिस कारण आम लोगों के लिए बनी ये बाई उनके बजट से बाहर होने लगी.

वक्त के साथ राजदूत की लोकप्रियता खोने लगी. लोग इसे नकारने लगे. यही कारण है कि 1990 के अंत तक. इस बाइक का पतन शुरू हो गया. 

प्रोडक्शन में कमी के कारण. कंपनी ने इसे बंद करने का निर्णय लिया. साल1991 में. आखरी राजदूत बेची गई. आज राजदूत भले ही कबाड़ में पड़ी दिखाई देती है. मगर बहुत से लोगों ने इसके जरिये ही अपनी शुरुआत की थी. भारतीय क्रिकेटर एमएस धोनी ने भी अपनी पहली बाइक राजदूत के तौर पर खरीदी थी. तब तक इसका जमाना चला गया था.


मगर यह बाइक हमेशा से उनके दिल के पास थी इसलिए ही उन्होंने इसे खरीदा और ठीक करवाया. राजदूत आज एक इतिहास बन चुकी है. कुछेक बाइक कलेक्ट्री होंगे जिनके पास ये बाइक आज मौजूद हो. भले ही ये बाइक आज कहीं दिखाई नहीं देती. 

मगर जिन लोगों ने इस बाइक को चलाया है. उनके दिलों में ये हमेशा बसती है. आप या आपके परिवार में भी किसी ने राजदूत बाइक का अनुभव लिया हो तो.कमेंट बॉक्स में हमारे साथ जरूर शेयर करें. धन्यवाद दोस्तो.

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